Thursday, May 21, 2009

निशानियाँ.....



शहर-ऐ-दिल की रौनक ले गया कोई,
कुछ सूखे फूल, चंद लम्हे दे गया कोई!

क्या क़यामत सी थी उसकी तसल्लियाँ भी,
मुसलसल बेकरारिया दे गया कोई...
मुसलसल - continuous

वो हैं खुशबू किसी दिल-ऐ-चमन की,
हमे तो बेयाबा कर गया कोई....

चलो माना कोई मरता नहीं जुदाई मैं,
सांसें हैं मगर, जिंदगानी ले गया कोई!

भागती ही रहती है यह ज़िन्दगी भी 'आलम'
थक सा गया हूँ, पर नींदे ले गया कोई !!

आलम सीतापुरी... :)
.. your comments will help me to improvise!!

Friday, February 27, 2009

ख्वाहिश..

वो भी क्या क़यामत की घडी होगी ,
आलम-ऐ-ख्वाब की सूरत जब रू-ब-रू होगी.
(क़यामत - doomsday, आलम-ऐ-ख्वाब- dream face, रू-ब-रू- Infront)

कब तक निहा रखेंगे वो हाल-ऐ-दिल हमसे,
ज़प्त-ऐ- मोहब्बत की भी एक इन्तहा होगी.
(निहा- Disguise, ज़प्त-ऐ- मोहब्बत- disguising one's love, इन्तहा-limit )

माना हैं अंजान कायद-ऐ-हुस्न से मगर,
उनके इशारों की भी कोई जुबां होगी .
(कायद-ऐ-हुस्न - Rules of Beauty, जुबां - language)

न तो मौसम , न सोहबत-ऐ-रिंदा की ज़रुरत,
अब तो हर वक़्त उनकी नज़रो से मयकशी होगी.
(सोहबत-ऐ-रिंदा- company of drinkers, मयकशी - drinking liquior)

निकले न गर अल्फाज़ उनकी सूरत देखकर ,
मेरी हालत ही मेरी मोहब्बत की ज़ुबानी होगी.
(अल्फाज़- words, - हालत- condition, ज़ुबानी- narration)

गम न कर ज़िन्दगी के अँधेरे हैं फानी,
काली रात के बाद सुबह ज़रूर होगी .
(फानी - going to be last soon )

सबको मिले उनके मंजिल 'आलम'
अब तेरे दिल की येही दुआ होगी.
(दुआ - Desire)

आलम सीतापुरी॥ its me :)

Please do write your comments at the end.. will be a great feedback for me.

Friday, July 11, 2008

पत्थर


One of the finest Nazms by Ahmed Nadeem Quasmi Shahab!!


रेत से बुत न बना ए मेरे अच्छे फनकार!!
(फनकार: artist)
एक लम्हे को ठहर, मैं तुझे पत्थर ला दूँ
मैं तेरे सामने अम्बार लगा दूँ लेकिन
कौन से रंग का पत्थर तेरे काम आयेगा
सुर्ख पत्थर जिसे दिल कहती है बेदिल दुनिया
या वो पत्थराई हुई आँख का नीला पत्थर
जिस में सदीयों के तहय्युर के पड़े हों डोरे
(तहय्युर : astonishment)
क्या तुझे रूह के पत्थर की ज़रूरत होगी
जिस पे हक बात भी पत्थर की तरह गिरती है
इक वो पत्थर है जिसे कहते हैं तहजीब-ऐ-सफ़ेद
उस के मर-मर में सियाह खून झलक जाता है
इक इन्साफ का पत्थर भी तो होता है मगर
हाथ में तेशा-ऐ-ज़र हो तो वो हाथ आता है
(तहजीब-ऐ-सफ़ेद: culture of the elite class; तेशा-ऐ-ज़र

: power of money)

जितने माय्यार हैं इस दौर के सब पत्थर हैं
शेर भी रक्स भी तस्वीर-ओ -घिना भी पत्थर
मेरे इल्हाम तेरा ज़हन ऐ रसा भी पत्थर
इस ज़माने में हर फन का निशाँ पत्थर है
हाथ पत्थर हैं तेरे तेरी जुबां पत्थर है
(मेयार : paradigms; इल्हाम : inspiration)
रेत से बुत न बना ए मेरे अच्छे फनकार!!

Ahmed Nadeem Qasmi

Friday, July 4, 2008

इज़हार..

अहमद नदीम कासमी :One of the most prominent poet of Urdu world। Gulzar Sahab consider him as his his spritual guru and mentor. He mourned his death telling, “I lost my spiritual guru whom I called Baba” . Here is one of the finest classical gazal from this great poet ...
Enjoy the various unsaid feminine signs of love!!


तुझे इज़हार-ऐ मुहब्बत से अगर नफरत है,
तूने होंटों को लरज़ने से तो रोका होता

बे-नियाजी से, मगर कांपती आवाज़ के साथ,
तूने घबरा के मेरा नाम न पूछा होता

तेरे बस में थी अगर मशाल-ऐ-जज़्बात की लौ,
तेरे रुखसार में गुलज़ार न भड़का होता

यूँ तो मुझसे हुई सिर्फ़ आब-ओ हवा की बातें,
अपने टूटे हुए फिकरों को तो परखा होता

यूँही बेवजह ठिठकने की ज़रूरत क्या थी,
दम-ऐ रुखसत मैं अगर याद न आया होता

तेरा घम्माज़ बना ख़ुद तेरा अंदाज़-ऐ-खिराम,
दिल न संभला, तो क़दमों को संभाला होता

अपने बदले मेरी तस्वीर नज़र आ जाती,
तूने उस वक़्त अगर आईना देखा होता

हौसला तुझ को न था मुझ से जुदा होने का,
वरना काजल तेरी आंखों में न फैला होता

~~अहमद नदीम कासमी ~~

Thursday, July 3, 2008

वो कोई और न था


वो कोई और न था चंद खुश्क पत्ते थे,
शजर से टूट के जो फसल-ऐ-गुल पे रोये थे
(खुश्क: dry; चंद: few; शजर: tree; फसल-ऐ-गुल : season of flowers)

अभी अभी तुम्हें सोचा तो कुछ न याद आया,
अभी अभी तो हम एक-दूसरे से बिछडे थे

तुम्हारे बाद चमन पर जब एक नज़र डाली,
कली कली में खिजां के चिराग जलते थे (my fav)
(खिजां : autumn)

तमाम उम्र वफ़ा के गुनाह गार रहे,
ये और बात के हम आदमी तो अच्छे थे (my fav)

शब्-ऐ-खामोश को तन्हाई ने जुबां दे दी,
पहाड़ गूँजते थे दश्त सन-सनाते थे
(शब्-ऐ-खामोश: silent night; जुबां : voice; दश्त : desert)

वो एक बार मरे जिन को था हयात से प्यार
जो जिंदगी से गुरेज़ाँ थे रोज़ मरते थे (my fav)
(हयात: life; गुरेज़ाँ : escapists)

नए ख़याल अब आते हैं ढल के जेहन में,
हमारे दिल में कभी खेत लह- लहाते थे
(जेहन : mind)

ये इर्तिका का चलन है के हर ज़माने में,
पुराने लोग नए आदमी से डरते थे
(इर्तिका : progressive)

“नदीम” जो भी मुलाक़ात थी अधूरी थी ,
के एक चेहरे के पीछे हज़ार चेहरे थे (my fav)

~~अहमद नसीम कासमी~~

Wednesday, July 2, 2008

उसके पहलू से...



उसके पहलू से लग के चलते हैं
हम कहीं टालने से टलते हैं !!

मैं उसी तरह तो बहलता हूँ
और सब जिस तरह बहलते हैं !!

वोह है जान अब हर एक महफिल की
हम भी अब घर से कब निकलते हैं !! (my fav)

क्या तक़ल्लुफ़ करें ये कहने में
जो भी खुश है, हम उस से जलते हैं !! (my fav)

है उसे दूर का सफर दरपेश ,
हम संभाले नहीं संभलते हैं !!

है अजब फैसले का सेहरा भी
चलना पड़िये तो पाँव जलते हैं !! (my fav)

हो रहा हूँ मैं किस तरह बरबाद ,
देखने वाले हाथ मलते हैं !! (my fav)

तुम बनो रंग, तुम बनो खुश्बू
हम तो अपने सुखन में ढलते हैं !! (my fav) ()
~~जान एलिया~~

Monday, June 30, 2008

की......मैं



बदन के दोनों किनारों से जल रहा हूँ मैं ,
की छू रहा हूँ तुझे, और पिघल रहा हूँ मैं | (my fav)

तुझी पे ख़त्म है जानां मेरी ज़वाल की रात,
तू अब तुलु भी हो जा, की ढल रहा हूँ मैं | (my fav)
(ज़वाल : nadir; तुलु : appearing)

बुला रहा है मेरा जामा-जेब मिलने को
तो आज पैरहन-ऐ-जान बदल रहा हूँ मैं |
(पैराहन-ऐ-जान: clothes of the soul)

घुबार-ऐ-रहगुज़र का ये हौसला भी तो देख,
हवा-ऐ-ताज़ा! तेरे साथ चल रहा हूँ मैं |
(घुबार-ऐ-रहगुज़र : dust of the path; हवा-ऐ-ताज़ा : fresh breeze)

मैं ख्वाब देख रहा हूँ के वो पुकारता है ,
और अपने जिस्म से बाहर निकल रहा हूँ मैं | (my fav)

~~इरफान सिद्दीकी~~

Monday, June 23, 2008

तुझे खो कर भी तुझे पाऊँ...



Excellent imagination of the Shayar !!

तुझे खो कर भी तुझे पाऊँ जहाँ तक देखूँ ,
हुस्न-ऐ-याज्दान से तुझे हुस्न-ऐ-बुतां तक देखूँ |
(हुस्न-ऐ-याज्दान : beauty of God; हुस्न-ऐ-बुतां : beauty of idols)

तूने यूं देखा है जैसे कभी देखा ही न था,
मैं तो दिल में तेरे क़दमों के निशाँ तक देखूँ | (my fav)

सिर्फ़ इस शौक़ में पूछी हैं हजारों बातें ,
मैं तेरा हुस्न, तेरे हुस्न-ऐ-बयान तक देखूँ |

वक़्त ने जेहन में धुंधला दिए तेरे खद्दा-ओ-खाल,
यूं तो मैं टूटते तारों का धुंआ तक देखूँ |
(खद्दा-ओ-खाल : appearence)

दिल गया था तो ये आँखें भी कोई ले जाता, (my fav)
मैं फ़क़त एक ही तस्वीर कहाँ तक देखूँ |

एक हकीक़त सही फिरदौस में हूरों का वजूद, (too gud!! love it)
हुस्न-ऐ-इंसान से निपट लूँ तो वहाँ तक देखूँ !!
(फिरदौस : paradise)

~~अहमद नदीम कासमी ~~

Sunday, June 15, 2008

क्या तुम.....



The beauty of this Gazal is its simplicity yet complelling pessimitic reasons present in the next line of sher which is in form of conversation.. simply superb!!

गाहे गाहे बस अब यही हो क्या?
तुमसे मिलकर बहुत खुशी हो क्या ?

मिल रही हो बड़े तपाक के साथ....
मुझको यक्सर भुला चुकी हो क्या?

याद हैं अब भी अपने ख्वाब तुम्हें.....
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या?

बहुत नजदीक आती जा रही हो ....
बिछड़ने का इरादा कर लिया है क्या ?


बस मुझे यूँही एक ख्याल आया......
सोचती हो तो सोचती हो क्या?

अब मेरी कोई ज़िंदगी ही नहीं... (my fav)
अब भी तुम मेरी ज़िंदगी हो क्या ?

क्या कहा, इश्क जाविदानी है... (my fav)
आखरी बार मिल रही हो क्या?

हाँ, फज़ा यहाँ की सोयी सोयी सी है...
तुम बहुत तेज़ रौशनी हो क्या?

मेरे सब तंज़ बे-असर ही रहे ... (my fav)
तुम बहुत दूर जा चुकी हो क्या?

दिल में अब सोज़-ऐ-इंतिज़ार नहीं (my fav)
शम्म-ऐ-उम्मीद ! बुझ गई हो क्या?

~~जौन एलिया~~

Sunday, June 8, 2008

देखते हैं....



सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं ,
सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं |

सुना है रब्त है उस को ख़राब हॉलों से,
सो अपने आप को बरबाद करके देखते हैं| (my fav)
(रब्त : closeness)

सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ऐ-नाज़ुक उसकी ,
सो हम भी उस की गली से गुज़र के देखते हैं |
(चश्म -ऐ -नाज़ुक : delicate eyes; गाहक : customer)

सुना है उस को भी है शेर -ओ -शायरी से शाघाफ़,
सो हम भी मोजज़े अपने हुनर के देखते हैं|(my fav)
(शाघाफ़ : interest; मोजज़े : miracles)

सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं,
ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं |

सुना है रात उसे चाँद ताकता रहता है ,
सितारे बाम -ऐ -फलक से उतर कर देखते हैं (my fav)
(बाम -ऐ -फलक : terrace of the horizon)

सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं ,
सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं |

सुना है उस के लबों से गुलाब जलते हैं,
सो हम बहार पर इल्जाम धर के देखते हैं |

सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं ,
सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं |

सुना है उस की सियाह चाश्मगी क़यामत है,1
सो उस को सुर्माफरोश आह भर के देखते हैं|
(सुर्माफरोश : kohl vendors)

सुना है हश्र हैं उस की गजाल सी आँखें,
सुना है उस को हिरन दस्त भर के देखते हैं |

सुना है आईना तम्साल है जबीन उसकी,
जो सादा दिल हैं उसे बन संवर के देखते हैं |

सुना है उस के बदन के तराश ऐसे हैं,
के फूल अपनी क़बायें कतार के देखते हैं |
(क़बायें : tunic)

सुना है उस के शबिस्तां से मुत्तासिल है बहिश्त,
मकीं उधर के भी जलवे इधर के देखते हैं |
(शबिस्तान: bedroom; मुत्तासिल : near; मकीं : tenant)

रुके तो गर्दिशें उस का तवाफ करती हैं ,
चले तो उस को ज़माने ठहर के देखते हैं|
(गर्दिश : time)

किसे नसीब के बे-पैरहन उसे देखे ,
कभी कभी दर-ओ-दीवार घर के देखते हैं|
(बे-पैरहन: without clothes)

कहानियां ही सही सब मुबालागे ही सही,
अगर वो ख्वाब है तो ताबीर कर के देखते हैं |
(मुबालागे : beyond one’s limits)

बस एक निगाह से लुटता है काफिला दिल का,
सो रह-रवां -ऐ -तमन्ना भी धर के देखते हैं |
(रह -रवां : travellers)

सुना है रात से बढ़ कर हैं काकुलें उस की
सुना है शाम को साए गुज़र के देखते हैं |
(काकुल : tresses)

अब उस के शहर में ठहरें की कूच कर जाएं,
“फ़राज़” आओ सितारे सफर के देखते हैं |

~~ अहमद फ़राज़~~

Enjoy Narration from Faraz Sahab himself in a Mushyara..

Saturday, June 7, 2008

रंजिश ही सही

... खूबसूरत कोम्पोसिशन और उतने ही दिलकश आवाज़ मैं मेहंदी हसन साहब ने इसको गया है, मेरे पसंदीदा ग़ज़ल मै से एक...

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ ,
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
(रंजिश : animosity)

पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्म -ओ -रहे दुनिया ही नीभाने के लिए आ
(मरासिम : relationship; रस्म -ओ -रहे दुनिया : manners, tradi ns of the world)

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम ,
तू मुझ से खफा है तो ज़माने भी लिए आ !
(सबब - reason)

कुछ तो मेरे पिन्न्दार -ऐ -मुहब्बत का भरम रख ,
तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ !
(पिन्न्दार-ऐ-मुहब्बत : love’s pride)

एक उम्र से हूँ लाज्ज़त-ऐ-गिरिया से भी महरूम ,
ऐ राहत-ऐ- जान मुझको रुलाने के लिए आ |
(उम्र : ages; लाज्ज़त -ऐ गिरिया : joy of crying; महरूम : devoid; राहत-ऐ-जान : comfort of the soul)

अब तक दिल-ऐ-खुश-फ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें,
ये आखरी शम्में भी बुझाने के लिए आ |
(दिल-ऐ-खुश-फ़हम : understanding/gullible heart; उम्मीदें : hopes; शम्में : lights)

~~अहमद फ़राज़~~

The following ashaar were written by Talib Baghpati but Mehdi Hassan sings them as part of this Ghazal.
माना की मुह्हबत का छुपाना है मुहब्बत,
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ |
(रोज़ : day)

जैसे तुझे आते हैं न आने के बहाने,
ऐसे ही किसी रोज़ न जाने के लिए आ |
(बहाने : excuses)

Click here to listen this Gazal sung by Mehndi Hassan in a live concert.. need some patience :)

Friday, June 6, 2008

क्या कीजिये...

हुस्न जब मेहबान हो तो क्या कीजिये,
इश्क की मग्फिरत की दुआ कीजिये |
(मेहरबान : generous; मग्फिरत : pardon, forgiveness)

इस सलीके से उनसे गिला कीजिये ,
जब गिला कीजिये हंस दिया कीजिये |

दूसरों पर अगर तब्सिरा कीजिये ,
सामने आईना रख लिया कीजिये |
(तब्सिरा : criticism)

आप सुख से हैं तर्क-ऐ-ताल्लुक के बाद ,
इतनी जल्दी न ये फैसला कीजिये |
(तर्क ऐ -ताल्लुक : breaking off)

कोई धोखा न खा जाए मेरी तरह
ऐसे खुल के न सबसे मिला कीजिये
~~खुमार बाराबंकवी ~~

Wednesday, June 4, 2008

जी चाहता है..


जी चाहता है फलक पे जाऊं ,
सूरज को घुरूब से बचाऊँ !
(फलक : vault of heaven; घुरूब : ebb)

बस मेरा चले जो गर्दिशों पर,
दिन को भी न चाँद को बुझाऊँ !
(गर्दिश : time)

मैं छोड़ के सीधे रास्तों को ,
भटकते हुए नेकियां कमाऊँ !

मैं शब के मुसाफिरों की खातिर ,
मशाल न मिले तो घर जलाऊँ !

अशार हैं मेरे इस्तियारे ,
आओ तुम्हें आईने दिखाऊँ !
(इस्तियारे : hope)

यूं बाँट के बिखर के रह गया हूँ ,
हर शख्स मैं अपना अक्स पाऊँ !(my fav)

आवाज़ जो दूँ किसी के दर पर,
अन्दर से भी ख़ुद निकल के आऊँ !(my fav)

हर ज़बर पे सब्र कर रहा हूँ ,
इस तरह कहीं उजर न जाऊं !

रोना भी तर्ज़ ऐ गुफ्तुगू है ,
आँखें जो रुकें तो लब हिलाऊँ! (my fav)

ख़ुद तो “नदीम ” आजमाया ,
अब मर के खुदा को आज़माऊँ !

~~अहमद नदीम कासमी ~~
Enjoy this Gazal in voice of Nadeem Kasmi sir;

सवाल...

तू बता दिल-ऐ- बेताब, कहाँ आते हैं ,
हमको खुश रहने के आदाब कहाँ आते हैं |

मैं तो यक्मुश्त उसे सौप दूँ सब-कुछ लेकिन,
एक मुट्ठी में मेरे ख्वाब कहाँ आते हैं |

मुद्दतों बाद तुझे देख के दिल भर आया ,
वरना शहरों में सैलाब कहाँ आते हैं |

मेरी बेदार निगाहों में अगर भूले से
नींद आए भी तो अब ख्वाब कहाँ आते हैं|

शिद्दत ऐ -दर्द है या कसरत ऐ -मय नोशी है ,
होश में अब तेरे बेताब कहाँ आते हैं |

हम किसी तरह तेरे दर पे ठिकाना कर लें ,
हम फकीरों को ये आदाब कहाँ आते हैं |

सर-बसर जिन में फ़क़त तेरी झलक मिलती थी ,
अब मयस्सर हमे वो ख्वाब कहाँ आते हैं |

Tuesday, June 3, 2008

मैं कब कहता हूँ..

मैं कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है
मगर उस ने मुझे चाहा बहुत है

खुदा इस शहर को महफूज़ रखे
ये बच्चों की तरह हंसता बहुत है

मैं हर लम्हे में सदियाँ देखता हूँ
तुम्हारे साथ एक लम्हा बहुत है

वो अब लाखों दिलों से खेलता है
मुझे पहचान ले, इतना बहुत है

~~ Bahir Badar

चन्द अशार - जौन आलिया

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
है मुहब्बत हयात की लाज़त
वरना कुछ लाज़त -ऐ -हयात नही,
गर इजाज़त हो एक बात कहूं, वो ..........
मगर खैर कोई बात नही !
~~~~~~

शर्म, दहशत, झिझक, परेशानी... नाज़ से काम क्यू नही लेती,
वो, आप, जी, मगर... ये सब क्या है? तुम मेरा नाम क्यू नही लेती!
~~~~~~


मैंने हर बार उससे मिलते वक्त, उससे मिलने की जुस्तजू की है,
और उसके जाने के बाद भी, उसके खुशबु से गुफ्तगू की है |
~~~~~~

Sunday, October 21, 2007

What is Ghazal?

Here is something about GHAZAL which acts like Grammer for the Ghazal...

What is a Ghazal ?

Ghazal ! The word originates from arabic, meaning, "way or mannerism of talking to or talking about women." Thus in fact its an expression of love! But in this ever changing world the ghazal has become a reflection of the life around us, and now there is hardly any sphere of human interaction which the ghazal hasn't touched.

To better understand the finer nuances of Urdu ghazal it is imperative to understand the structure around which a ghazal is woven!

Classical Definition of Ghazal
------------------------------
Briefly stated Ghazal is a collection of Sher's which follow the rules of 'Matla', 'Maqta', 'Beher', 'Kaafiyaa' and 'Radif'. So to know what Ghazal is, it's necessary to know what these terms mean.

What is a Sher ?
It's a poem of two lines. A Sher does not need, anything around it, to convey the message.
So Ghazal is necessarily a collection of two-line-poems called Sher. [ So the Rafi solo "rang aur noor ki baaraat kise pesh karu" is NOT a Ghazal, as every stanza is of 3 lines, and not 2. ]

What are other restrictions ? Many, and important ones.

What is 'Beher' ?
It can be considered as the length of the Sher. Both the lines in the Sher *MUST* be of same 'Beher'. And all the Sher's in one Ghazal *MUST* be of the same 'Beher'.

An e.g. of Small Beher :
ahale dairo-haram reh gaye
tere deewane kam reh gaye
[ Also Talat song, "dil-e-nadan tuze hua kya hai" ]

So Ghazal is a collection of Sher's of SAME 'Beher'.

What is 'Radif' ?
In a Ghazal, second line of all the Sher's MUST end with the SAME word/s. This repeating common words is the Radif' of the Ghazal. In our example, the 'Radif' is "nahin aati". [ Sometimes, the Ghazal becomes known by its 'Radif'. eg. "jaraa aahista chal" sung by Pankaj Udhas.

What is 'Kaafiyaa' ?
'Kaafiyaa' is the rhyming pattern which all the words before 'Radif' MUST have. In our example the 'Kaafiyaa' is "bar", "nazar", "par", "magar" etc. This is a necessary requirement.

So Ghazal is a collection of Sher's of same 'Beher', ending in same 'Radif' and having same 'Kaafiyaa'.

What is 'Matla' ?
The first Sher in the Ghazal *MUST* have 'Radif' in its both lines. This Sher is called 'Matla' of the Ghazal and the Ghazal is usually known after its 'Matla'.

What is 'Maqta' ?
A Shayar usually has an alias ie. 'takhallus' eg. Mirza Asadullakhan used 'Ghalib' as his 'takhallus' and is known by that. Other examples are 'Daag' Dehlvi, 'Mir' Taqi Mir, Said 'Rahi', Ahmed 'Faraz' etc.


To summarize, Ghazal is a collection of Sher's (independent two-line poems), in which there is atleast one 'Matla', one 'Maqta' and all the Sher's are of same 'Beher' and have the same 'Kaafiyaa' and 'Radif'.

[Source - Various links]

Friday, October 12, 2007

इल्तजा..



अब तो गम-ए- हिज्र का इलाज़ होना चाहिऐ,
आज उस सितमगर का दीदार होना चाहिऐ..
(गम -ऐ -हिज्र - night of loneliness)

यू बहुत काट ली तनहा ज़िंदगी हमने
अब तो कोई हमसफ़र होना चाहिए
(तनहा - Alone)

होंगे मशहूर चर्चे तेरे परदानशी हुस्न के ,
पर आज वो ज़लवा तेरा एया होना चाहिए .
(परदा-नाशी हुस्न - beauty in veil, एया - disclose)

छाने लगा क्यो नशा उनकी सूरत देखकर,
या खुदा और कुछ और ताकत-ऐ-दीरार देना चाहिए|
(ताकत-ऐ-दीरार - power to keep watching)

आने लगा है नाम हमारा लब पे उनके ,
अब इस नाचीज़ को मशहूर होना चाहिए!.
(लब - lips , नाचीज़ - insignificant)

शायद कही कमी थी मेरे इबादत मैं ,
वरना बुत को भी खुदा होना चाहिए|
(इबादत - worship)

आसान नही यू ग़ज़ल कहना 'आलम'
हाल-ऐ-दिल बयां करने का हुनर आना चाहिए|
(हाल-ऐ- दिल बयां- describe one's thoughts/state of heart, हुनर- art)

~~ आलम सीतापुरी~~ Myself:)

एहसान...

बड़ा एहसान हम फरमा रहे हैं
के उनके खत उन्हें लौटा रहे हैं ...

नही तर्क - ए - मोहब्बत पर वो राज़ी
क़यामत है कि हम समझा रहे हैं...

यकीन का रास्ता तय करने वाले
बोहत तेज़ी से वापिस आ रहे हैं.....

ये मत भूलो के ये लम्हात हमको
बिछड़ने के लिये मिलवा रहे हैं .....

ताजुब हे के इश्क -ओ -आशिकी से अभी
कुछ लोग धोका खा रहे हैं ॥

तुम्हें चाहेंगे जब छिन जाओगे तुम
अभी हम तुम को अर्ज़ां पा रहे हैं....

किसी सूरत इन्हें नफरत हो हम से
हम अपने ऐब खुद गिनवा रहे हैं॥

वो पागल मस्त है अपनी वफ़ा में
मेरी आंखो में आंसू आ रहे हैं ...

दलीलौं से उसे कायेल किया था
दलीलें दे के अब पछता रहे हैं ॥

तेरी बाहों से हिजरत करने वाले
नए माहौल में घबरा रहे हैं...

ये जज्बा -ए -इश्क है या जज्बा -ए -रहम
तेरे आंसू मुझे रुल्वा रहे हैं ...

अजब कुछ रब्त हे तुम से के तुमको
हम अपना जान कर ठुकरा रहे हैं ...

वफ़ा कि यादगारें तक ना होंगे
मेरी जान बस कोई दिन जा रहे हैं ...

~~~जौन औलिया~~

किस से इजहार...

किस से इजहार -ए -मदुआ कीजिये
आप मिलते ही नही हैं क्या कीजिये
इक ही फन हमने सीखा है,
जिस से मिलिये उसे खफा कीजिये
मुझको आदत है रूठ जाने की,
आप मुझको मन लिया कीजिये
मुझ से कहती है वो शराब आंखें ,
आप वो ज़हर मत पिया कीजिये....

~~ जॉन आलिया ~~